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आचार्य विनोबा भावे

आचार्य विनोबा भावे

  • हाल ही में प्रधानमंत्री ने आचार्य विनोबा भावे की जयंती पर उन्हें भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित की।

जन्म:

  • विनायक नरहरि भावे का जन्म 11 सितंबर 1895 को गागोडे, बॉम्बे प्रेसीडेंसी (अब महाराष्ट्र में) में हुआ था।
  • वे नरहरि शंभू राव और रुक्मिणी देवी के ज्येष्ठ पुत्र थे।
  • उन पर उनकी मां का बहुत प्रभाव था। वह उनसे 'गीता' पढ़ने के लिए प्रेरित हुए।

संक्षिप्त पहचान:

  • वे भारत के सबसे प्रसिद्ध समाज सुधारकों में से एक और मोहनदास के (महात्मा) गांधी के व्यापक रूप से सम्मानित शिष्य थे। साथ ही वे भूदान यज्ञ के संस्थापक (भूमि-उपहार आंदोलन) भी थे।

गांधी के साथ जुड़ाव:

  • वे महात्मा गांधी के सिद्धांतों और विचारधाराओं के प्रति आकर्षित और राजनीतिक और आध्यात्मिक दोनों दृष्टिकोण से गांधी को अपना गुरु मानते थे।
  • 1916 में अहमदाबाद के पास साबरमती में गांधी के आश्रम (तपस्वी समुदाय) में शामिल होने के लिए अपनी हाई स्कूल की पढ़ाई छोड़ दी।
  • गांधी की शिक्षाओं ने भावे को भारतीय ग्रामीण जीवन को बेहतर बनाने के लिए समर्पित जीवन की ओर अग्रसर किया।

स्वतंत्रता संग्राम में भूमिका:

  • उन्होंने असहयोग के कार्यक्रमों में भाग लिया और विशेषकर विदेशी आयात के स्थान पर स्वदेशी वस्तुओं के प्रयोग का आह्वान किया।
  • 1940 में, उन्हें भारत में गांधी द्वारा ब्रिटिश राज के खिलाफ पहले व्यक्तिगत सत्याग्रही (सामूहिक कार्रवाई के बजाय सत्य के लिए खड़े होने वाले व्यक्ति) के रूप में चुना गया था।
  • 1920 और 30 के दशक के दौरान भावे को कई बार कैद किया गया था और ब्रिटिश शासन के अहिंसक प्रतिरोध का नेतृत्व करने के लिए 40 के दशक में पांच साल की जेल की सजा दी गई थी।
  • उन्हें आचार्य (शिक्षक) की उपाधि से सम्मानित किया गया था।

सामाजिक कार्यों में भूमिका:

  • उन्होंने असमानता जैसी सामाजिक बुराइयों को मिटाने की दिशा में अथक प्रयास किया।
  • उन्होंने गांधी द्वारा स्थापित उदाहरणों से प्रभावित होकर, उन लोगों का मुद्दा उठाया, जिन्हें गांधी द्वारा हरिजन कहा जाता था।
  • उन्होंने गांधी से सर्वोदय शब्द अपनाया जिसका अर्थ है ""सभी के लिए प्रगति""।
  • उनके अधीन सर्वोदय आंदोलन ने 1950 के दशक के दौरान विभिन्न कार्यक्रमों को लागू किया, जिनमें से प्रमुख भूदान आंदोलन है।

भूदान आंदोलन:

  • 1951 में तेलंगाना के पोचमपल्ली गांव के हरिजनों ने उनसे गुजारा करने के लिए करीब 80 एकड़ जमीन देने का अनुरोध किया।
  • विनोबा ने गाँव के जमींदारों को आगे आने और हरिजनों को बचाने के लिए कहा, और एक जमींदार ने आवश्यक भूमि की पेशकश की। इस घटना ने बलिदान और अहिंसा के इतिहास में एक नया अध्याय जोड़ा।
  • यह भूदान (भूमि का उपहार) आंदोलन की शुरुआत थी।
  • यह आंदोलन तेरह साल तक चलता रहा और विनोबा ने देश की कई हिस्सों का भ्रमण किया और कुल 58741 किलोमीटर की दूरी तय की।
  • वह लगभग 4.4 मिलियन एकड़ भूमि एकत्र करने में सफल रहे, जिसमें से लगभग 1.3 मिलियन को गरीब भूमिहीन किसानों के बीच वितरित किया गया।
  • इस आंदोलन ने दुनिया भर से प्रशंसकों को आकर्षित किया और स्वैच्छिक सामाजिक न्याय को जागृत करने के लिए इस तरह का एकमात्र प्रयोग होने के लिए इसकी सराहना की गई।

धार्मिक कार्य:

  • 1923 में, उन्होंने मराठी में एक मासिक 'महाराष्ट्र धर्म' निकाला, जिसमें उपनिषदों पर उनके निबंध थे।
  • उन्होंने जीवन के एक सरल तरीके को बढ़ावा देने के लिए कई आश्रमों की स्थापना की, जो विलासिता से रहित थे, क्योंकि यह लोगों का ध्यान ईश्वर की भक्ति से हटा देते थे।
  • महात्मा गांधी की शिक्षाओं की तर्ज पर आत्मनिर्भरता के उद्देश्य से, 1959 में महिलाओं के लिए एक छोटा समुदाय, ब्रह्म विद्या मंदिर की स्थापना की।
  • उन्होंने गोहत्या पर कड़ा रुख अपनाया और भारत में इसके प्रतिबंधित होने तक उपवास पर जाने की घोषणा की।

साहित्यक रचना:

  • उनकी महत्वपूर्ण पुस्तकों में शामिल हैं: स्वराज्य शास्त्र, गीता प्रवचन, तीसरी शक्ति आदि।

मृत्यु:

  • 1982 में वर्धा, महाराष्ट्र में मृत्यु हुई।

पुरस्कार:

  • विनोबा भाबे 1958 में रेमन मैग्सेसे पुरस्कार प्राप्त करने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय व्यक्ति थे। उन्हें 1983 में मरणोपरांत भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया था।

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