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कोयला खनन से गंभीर श्वसन और त्वचा रोग होने का खतरा

कोयला खनन से गंभीर श्वसन और त्वचा रोग होने का खतरा

  • नेशनल फाउंडेशन फॉर इंडिया द्वारा प्रकाशित एक सर्वेक्षण में कहा गया है कि कोयला खनन प्रदूषकों के लंबे समय तक संपर्क में रहने से व्यापक श्वसन और त्वचा संबंधी रोग हुए हैं।

मुख्य बिंदु:

  • साक्षात्कार में शामिल कम से कम 65% प्रतिभागियों ने क्रोनिक ब्रोंकाइटिस, अस्थमा, तथा त्वचा संबंधी बीमारियों जैसे एक्जिमा, डर्मेटाइटिस और फंगल संक्रमण की शिकायत बताई।
  • खदानों के निकट रहने वाले लोग अपेक्षाकृत अधिक असुरक्षित थे।
  • धनबाद और रामगढ़, जहां ऐसे क्षेत्रों में अधिक लोग रहते हैं, वहां फेफड़े और श्वास संबंधी बीमारियों के साथ-साथ त्वचा संक्रमण के मामले भी अधिक हैं।
  • दुनिया के कोयले से दूर जाने से कोयला-निर्भर क्षेत्रों में बड़ी संख्या में नौकरियां खत्म होने और आर्थिक मंदी आने की आशंका है।
  • इसका सीधा असर न केवल कोयला खनिकों और श्रमिकों पर पड़ेगा, बल्कि व्यापक स्थानीय अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा।
  • अध्ययन का व्यापक जोर 'न्यायसंगत परिवर्तन' की जांच करने पर था, अर्थात यह कि किस प्रकार कोयला खनन पर सीधे निर्भर लोगों को इन नौकरियों से प्रभावी और संवेदनशील तरीके से दूर किया जा सकता है।

भारत और नवीकरणीय ऊर्जा

  • जबकि भारत ने वर्ष 2030 तक लगभग 500 गीगावाट बिजली या अपनी अनुमानित स्थापित क्षमता का लगभग आधा हिस्सा नवीकरणीय ऊर्जा स्रोतों से प्राप्त करने की प्रतिबद्धता जताई है, फिर भी यह उम्मीद है कि आने वाले दशकों में भारत में बिजली उत्पादन का मुख्य आधार कोयला ही रहेगा।
  • भारत की स्थापित विद्युत उत्पादन क्षमता का लगभग आधा हिस्सा, या लगभग 205 गीगावाट, कोयला-चालित ताप विद्युत संयंत्र हैं।
  • हालांकि, बदलाव की हवा चल रही है क्योंकि इस साल पहली बार, भारत द्वारा इस वर्ष की पहली तिमाही (जनवरी-मार्च) में जोड़े गए रिकॉर्ड 13.6 (गीगावाट) बिजली उत्पादन क्षमता में नवीकरणीय ऊर्जा का योगदान 71.5% रहा।
  • जबकि कुल विद्युत क्षमता में कोयले की हिस्सेदारी (लिग्नाइट सहित) वर्ष 1960 के दशक के बाद पहली बार 50% से नीचे आ गयी।

प्रीलिम्स टेकअवे

  • कोयला खनन के प्रभाव

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